भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका पर नित नये प्रश्नचिन्ह अंकित हो रहे हैं। संघ के महासचिव का पदभार ग्रहण करने के साथ ही एंटोनियो गुटेरेस की पक्षपातपूर्ण नीतियों ने पूरी दुनिया को अनेक खेमों में विभक्त करना शुरू कर दिया था। कोरोना काल में समूची मानवता पर हो रहे वायरस प्रकोप के जनक चीन को क्लीनचिट देने से लेकर इजराइल पर आठों दिशाओं से हो रहे आतंकी हमलों में कट्टरपंथियों के पक्ष में कार्यवाही करने के मुद्दों तक ने इस एकमात्र विश्व संस्था की प्रासांगिकता पर अनेक प्रश्नचिन्ह अंकित कर दिया हैं। हमास सरगना याह्या सिनवार की लाश के पास से मिले सामानों में संयुक्त राष्ट्र राहत कार्य अभिकरण यानी यूएनआरडब्लूए के एक अधिकारी हानी जोरोब का पासपोर्ट भी मिला है। आखिरकार संयुक्त राष्ट्र संघ के इस अधिकारी का आतंकी सरगना के साथ मिलकर गजवा-ए-दुनिया की मंजिल पाना प्रमाणित हो ही गया। ऐसे में यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि महासचिव के इशारे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक अधिकारी दुनिया भर में फैले आतंकी संगठनों के साथ जुगलबंदी कर रहे होंगे। बेशर्मी की हद तो तब पार हो गई जब हमास सरगना के पास से मिले संयुक्त राष्ट्र राहत कार्य अभिकरण के अधिकारी के दस्तावेजों पर अभिकरण के कमिश्नर जनरल फिलिप लेजारिनी ने एक बयान जारी करके इसे एजेन्सी और उसके कर्मचारी को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल की गई अनियंत्रित जानकारी बताया। सबूतों को अनदेखा करके उसे षडयंत्र बताकर स्वयं के दोषों को छुपाना तो आरोपियों का पुराना हथियार रहा है। वर्तमान में अभिकरण के अधिकारी हानी जोरोब का हमास सरगना के पास मिलने वाला पासपोर्ट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। गाजा में संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के नीचे हमास की सुरंगों का होना, इजराइल में की गई आतंकी हमले पर यूएन का मौन धारण करना, जबावी कार्यवाही को ज्यादती बताना, लेबिनान में इजराइल के मित्र देश भारत के जवानों को ब्लू लाइन पर नियुक्त करना, आतंकी संगठनों के आक्रामकता पर उनके विरुध्द कार्यवाही न करना, रूस-यूक्रेन के घटनाक्रम को खामोशी के साथ जागती आंखों से देखते रहना जैसी अनगिनत घटनायें है जो संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्वसनीयता, प्रमाणिकता और पारदर्शिता को तार-तार करतीं हैं। इजराइल के मुखिया बेंजामिल नेतन्याहू व्दारा अनेक बार संयुक्त राष्ट्र राहत कार्य अभिकरण पर फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये काम करने के नाम पर हमास का सहयोग करने के आरोप लगाये हैं। आंतंकियों ने स्कूलों, मदरसों, अस्पतालों, मस्जिदों, यतीमखानों, मुसाफिरखानों, सार्वजनिक स्थलों आदि के बेसमेन्ट में कई मंजिल नीचे अपने अड्डे बना रखे हैं जो मानवता के नाम पर मानवता की हत्या के लिए उपयोग में आ रहे हैं। दुनिया के अनेक गैर मुस्लिम देशों के आन्तरिक हालात बद से बद्तर हो चुके हैं। भारत में तो सन् 2006 में केरल की धरती पर गठित होने वाले पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआई ने मात्र 18 वर्षों में छदम्म संस्थायें बनाकर लगभग 100 करोड से अधिक की सम्पत्ति जमाकर ली है। इस आतंकी संगठन ने अपने गठन के साथ ही सामाजिक आन्दोलन का मुखौैटा ओढकर इस्लामिक स्टेट की स्थापना हेतु तैयारियां शुरू कर दीं थीं। गजवा-ए-हिन्द की मंजिल अख्तियार करने के लिए कट्टरपंथी आतंकियों की जमातें बनाई जाने लगीं। इस आतंकी गिरोह ने डिस्टिक्ट एग्जेक्यूटिव कमेटी यानी डीईसी बनाकर विदेशों से फंड जमा करने हेतु लगभग 50 से अधिक खाते खोले जिनमें से केवल 29 खातों की जानकारी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी लगा पायी है। हाल ही में ईडी ने 35 सम्पत्तियां जब्त कर लीं हैं जिनकी कीमत 57 करोड आंकी गई है। दूसरी ओर देश की लचर कानून व्यवस्था के कारण पीएफआई के निर्देश में चल रहीं अन्य सहयोगी संस्थाओं, ट्रस्टों, कम्पनियों, व्यक्तियों के नाम पर दर्ज सम्पत्तियां अभी तक बची हुईं हैं जिनकी सुरक्षा हेतु पार्टी विशेष के काले कोटधारी सीना ताने खडे हैं। सिंगापुर, कुवैत, कतर, तुर्किये, ओमान, सऊदी अरब, यूएई, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि में इसने 13000 से अधिक कट्टरपंथी सक्रिय सदस्य तैयार कर लिये हैं जो अपने आका के एक इशारे पर जिस्म की चिन्ता किये बिना गजवा-ए-हिन्द और गजवा-ए-दुनिया के लिये अत्याधुनिक हथियारों के साथ कूद पडने को बेताब हैं। अभी तक पापुलर फ्रंट आफ इंडिया की 94 करोड की अपराध से अर्जित आय का पता चल चुका है। यूं तो प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली पुलिस और एनआईए में दर्ज मामलों को आधार बनाकर मनी लांड्रिंग के केस दर्ज कर लिये हैं जिस पर राजनैतिक गलियारों के सफेदपोश शोर मचा रहे हैं। जांच के दौरान पता चला है कि पापुलर फ्रंट आफ इंडिया ने केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू, तेलंगाना, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, जम्मू-कश्मीर और मणिपुर में 29 खातों खोलकर देश और विदेश से डमी फर्मों से हवाला, दान, बैकिंग चैनल आदि तरीकों से भारी-भारी फंड ट्रांसफर किया है। आतंकवाद से कमाई गई आय के प्रमाण भी प्राप्त हो रहे हैं जिसमें अनेक नेताओं और राष्ट्रीय-क्षेत्रीय दलों के कद्दावर ओहदेदारों के शामिल होने की बात कही जा रही है। हमास, हिजबुल्लाह, हूती जैसे आतंकी गिरोहों की तर्ज पर पीएफआई ने पांव पसारना शुरू कर दिया है। इसने हवाई हमले और गोरिल्ला युध्द हेतु एक साइबर सिस्टम विकसित भी किया है जिसमें टेली कम्युनिकेशन से लेकर हथियार बनाने तक की 6 से अधिक शाखायें शामिल हैं। इस आतंकी गिरोह ने अधिकारियों को परेशान करने, फर्जी अफवाह फैलाने, व्यवस्था को पक्षपातपूर्ण प्रचारित करने, आम आवाम से ठगी करने तथा दुनिया को मरा हुआ बताकर उसका जनाजा निकालने जैसे हुक्म अपने सदस्यों के लिये जारी किये हैं। इस संगठन पर सन् 2022 में मोदी सरकार ने यूएपीए के अन्तर्गत प्रतिबंध लगाया था। तब भी अनेक विरोधी दलों ने पीएफआई के पक्ष में खडे होकर उस पर ज्यादतियां होने के नारे लगाये थे। सामाजिक दंगे, रक्त रंजित आन्दोलन, बलवा, भीड की शक्ल में हमले, अधिकारों हेतु हिंसक प्रदर्शन आदि के लिये ईश निंदा, धार्मिक अपमान, भावनायें आहत जैसे कारकों को आधार बनाकर शासकीय और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की पहल तो वर्षों पहले हो चुकी थी। अब तो देश को इस्लामिक झंडे के नीचे गुलाम बनाने की मंशा लेकर पापुलर फ्रंट आफ इंडिया खुलकर सामने आने लगा है। ऐसे में अमन पसन्द लोगों को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा का विभेद छोडकर इसके विरोध में एक जुट होना पडेगा अन्यथा देश में बंगलादेश की तरह ही हालात होते देर नहीं लगेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।