भोपाल। भाजपा में संगठन चुनाव शुरू हो गए हैं. मतदान केंद्र की समितियां बनने लगी हैं. हालांकि भाजपा में संगठन चुनाव के नाम पर नियुक्तियां होती आई हैं. 90 के दशक में एक दो बार जरूर वास्तव में संगठन चुनाव हुए थे, अन्यथा रायशुमारी का नाटक होता है और प्रदेश नेतृत्व विधायकों के हिसाब से मंडल अध्यक्ष मनोनीत कर देता है. जिला अध्यक्षों के मामले में सांसदों की चलती है. इस बार भी दावे किए जा रहे हैं कि ऐसा नहीं होगा, लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी विवादों से बचने के लिए विधायकों और विधानसभा चुनाव लड़े प्रत्याशियों के हिसाब से ही मंडल तय करेगी. भाजपा में प्रदेश स्तर पर 1087 मंडल हैं. यह मंडल इकाई सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. पार्षदों, सरपंचों, इत्यादि के फैसले मंडल इकाई ही लेती है. कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के बीच सेतुबंध का काम भी मंडल इकाई करती है. दरअसल,विधायकों के हिसाब से मंडल अध्यक्ष तय कर पार्टी सेफ गेम खेलना चाहती है लेकिन इससे कई बार नुकसान भी होता है. मंडल अध्यक्ष विधायकों के यस मैन बनकर रह जाते हैं. जाहिर है इससे मैदानी कार्यकर्ताओं को आमतौर पर मौका नहीं मिलता. दरअसल,करीब सवा महीने तक सतत ‘संगठन पर्व’ मनाकर अपना ‘कुनबा’ बढ़ाने के बाद अब भाजपा संगठन गढ़ने की तरफ़ बढ़ चली हैं. पार्टी में संगठन चुनाव का शंखनाद हो गया हैं. इसी चुनाव के ज़रिए भाजपा को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष, नया प्रदेश अध्यक्ष व नगर-जिला अध्यक्ष मिलेगा. नए मंडल अध्यक्ष व इकाइयां भी अस्तित्व में आएगी. संगठन गढ़ने के इस काम की शुरुआत बूथ समितियों के गठन से हो भी गई हैं. बूथ कमेटियों के अस्तित्व में आने के बाद भाजपा संगठन की सबसे मजबूत कड़ी मंडल इकाइयों का गठन होगा. नगर अध्यक्ष के मामले में अगर चुनाव की नोबत आती है तो मंडल अध्यक्ष ही अहम भूमिका में आ जाते हैं. ऐसे में सबकी दिलचस्पी मंडल इकाइयों के मनोनयन पर हैं. हैरत की बात तो ये है कि अभी भाजपा में शीर्ष स्तर पर ही ये तय नही हुआ हैं कि इस बार मंडल इकाइयों का गठन किस प्रक्रिया के तहत होगा. इसके लिए दिल्ली में केंद्रीय संगठन की अहम बैठक 23 नवंबर के बाद होगी. पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो गया है और वे एक्सटेंशन पर चल रहें हैं. ये ही सूरत ए हाल मध्यप्रदेश में भी हैं. यहां भी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल एक्सटेंशन पर चल रहा हैं. ऐसे में भाजपा के अंदर ही नहीं, बाहर भी भाजपा के संगठन चुनावों को दिलचस्पी से देखा जा रहा हैं. राजनीति के जानकारों की सबसे गहरी नज़र इस बात पर भी हैं कि भाजपा इस बार अपने संगठन को सत्ता के शिकंजे से दूर रख पाएगी? गौरतलब हैं कि बीते डेढ़ दो दशक से पार्टी में सत्ता औऱ संगठन के बीच की एक महीन दीवार न केवल ढह गई हैं, बल्कि एक तरह से सत्ता ही, संगठन पर एक तरह से हावी हो गई हैं. कुशा भाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खंडेलवाल के समय संगठन का दबदबा हुआ करता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. इसके अलावा दल बदल कर भाजपा में आए नेताओं और कार्यकर्ताओं के कारण भी संगठन का आंतरिक रसायन गड़बड़ा गया है. बहरहाल, भाजपा का मध्य प्रदेश का संगठन देशभर में मॉडल माना जाता है. मध्य प्रदेश को भाजपा संगठन की प्रयोगशाला भी कहा जाता है. देखना होगा कि भाजपा इस बार संगठन चुनाव में कौन सा नवाचार करती है.