भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया
दुनिया भर में इजराइल के साहस की चर्चायें जोरों पर है। पहले गाजा से हमास ने यहूदी राष्ट्र को अपने आतंक की चपेट में लिया। प्रतियोत्तर में की गई कार्यवाही पर संसार के अन्य मुस्लिम देशों के पाले हुए आतंकी संगठनों ने एक जुट होकर धमकाना शुरू कर दिया। धमकी के परिणामरहित होने पर ईरान के संरक्षण में विकसित हुए लेबनान से संचालित होने वाले हिजबुल्लाह ने भी इजराइल पर नया मोर्चा खोलकर आक्रमण शुरू कर दिया। ऐसे में दो मोर्चों पर इस्लामी जेहाद झेल रहे इस देश पर यमन के कट्टरपंथी गिरोह हूती ने भी मिसाइलें दागना शुरू कर दीं। इतना ही ईरान ने भी अपने पाले जल्लादों को हौसला देने के लिए स्वयं भी युध्द में भागीदारी दर्ज कर दी। चौतरफा घिर चुके इजराइल की आक्रामकता के आगे तार-तार होते जेहादी मंसूबों के बौखला कर गजवा-ए-दुनिया को संयुक्त राष्ट्र संघ के विवादास्पद महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी अपना खुला समर्थन दे दिया। आतंक को संरक्षित रखने की गरज से मानवता का राग अलापते हुए शान्ति सेना की तैनाती कट्टरपंथी बाहुल्य इलाकों में कर दी। इस पर इजराइल ने ब्लू लाइन के पास से शान्ति सेना हटाने निवेदन किया किन्तु गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कट्टरपंथियों का पक्ष लेते हुए कहा कि हम वहीं जमें रहेंगे, साथ ही साथ हम अपने रुख और शान्ति सैनिकों की सुरक्षा का हर घंटे आंकलन करेंगे। दुश्मन-ए-इंसान के रूप में पहचान बना चुके गुटेरेस ने अपनी पहली पारी कोरोना काल में चीन के पक्ष में खेली थी, जिसमें वायरस फैलाने के आरोपों में घिरे बुहान लैब को क्लीन चिट दी गई थी। चीन की करामात से लाशों में तब्दील हो रही जिन्दगियों की हकीकत को नजरंदाज करने वाला गुटेरेस चीनी षडयंत्र के साथ अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उडाते हुए खडा रहा। ड्रेगन का खूनी खेल चलता रहे और होते रहे भारत जैसे मानवतावादी राष्ट्रों पर प्रहार। वर्तमान में उसने एक और षडयंत्र को अंजाम देते हुए लेबनान के आतंकियों के ठिकानों की सुरक्षा हेतु शान्ति सेना के नाम पर 900 भारतीय सैनिकों को तैनात कर दिया। इजराइल की तरह ही जेहाद के जख्म झेलने वाले भारत को उसके ही मित्र राष्ट्र के विरुध्द इस्तेमाल करके संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने अपनी जहरीली सोच को ज्यादा घातक ढंग से पेश किया। हमास के व्दारा इजराइल पर होने वाले आतंकी हमले पर लगभग खामोशी अख्तियार करने वाले गुटेरेस पर हमेशा से ही सुख, शान्ति और सौहार्य का खुलेआम कत्ल करने के आरोप लगते रहे हैं। भारतीय जवानों को आतंकियों की सुरक्षा में तैनात करके उसे रेखांकित करने की गरज से गुटेरेस ने भारतीय सैनिकों की कर्तव्यनिष्ठा की तारीफ भी की ताकि इजराइल की मिसाइलें उसके दोस्त भारत का खून बहाने में संकोच करें। यदि संकोच की दीवार टूट जाये तो फिर मित्रता के कांच में दरार भी पड जाये। अपनों की शहादत पर भारत के अन्दर खून पीकर बडे हो रहे जन्मजात मीर जाफरों की जमात के हाथ में देश की सरकार को गिराने का मुद्दा आ जाये। देश के बाहर राष्ट्रविरोधी बयानों की परिभाषा बन चुके पैदाइशी नेता सहित अन्य स्वार्थियों को गृह युध्द का धरातल तैयार करने के लिए संसाधन मुहैया कराने वालों की हरकतें अब उजागर हो चुकीं हैं। अनेक राष्ट्रों में घरेलू कलह पैदा करके उन्हें खूनी युध्द में झौंकने वाले राष्ट्रों को संरक्षण देने में संयुक्त राष्ट्र संघ का वर्तमान चेहरा नित नये कीर्तिमान गढने में लगा है। संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल यानी यूएन आईएफआईएल में शामिल भारतीय सैनिकों को ही लेबनान में आतंकियों की सुरक्षा में लगाने की चाल चल कर गुटेरेस ने इजराइल के सामने धर्म संकट पैदा कर दिया है। एक ओर कट्टरता के मदरसे में पढकर निकले आतंकियों के सफाये का संकल्प तो दूसरी ओर मित्र देश के सैनिकों का बचाव। देखा जाये तो अभी तक का इजराइल ने अपने लगभग सभी लक्ष्य हासिल किये हैं। पाताल में छुपे धरती को नस्तनाबूत करनेे का इरादा रखने वाले दैत्यों को चुन-चुनकर मारना, किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ऐसे में गुटेरेस व्दारा चली गई इजराइल और भारत को एक साथ फंसाने वाली जहरीली चाल से उसकी मानसिकता को पूरी तरह उजागर कर दिया है। शान्ति सेना में भारत के अलावा भी अन्य देशों के सैनिक हैं परन्तु जानबूझकर उसने इजराइल के सामने भारतीय दीवार खडी की ताकि उसके दौनों हाथों में लड्डू रह सकें। अन्तर्राष्ट्रीयस्तर पर चल रहे इस षडयंत्र ने हमेशा ही शान्ति विरोधी गतिविधियों का सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटते हुए आतिताइयों सुरक्षा कवच ही मजबूत किया है। हथियारों के सौदागरों से साथ आतंकियों की जुगलबंदी को हवा देने में संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान भूमिका सर्वोच्च है। समूचे संसार में चल रही सम्प्रदायवाद की आंधी के मध्य देश में भी जातिवादी जहर, आस्थावादी कट्टरता और स्वच्छन्दवादी हरकतें चरम सीमा की ओर बढ चुकीं हैं। देश-दुनिया के वर्तमान हालातों के देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति न होगा संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर देश की संयुक्त संसदीय समिति तक को जेहादी जिस्मों ने अपनी कैद में कर रखा है जिसकी मुक्ति हेतु सकारात्मक सोच वालों को संयुक्त रूप से प्रयास करना होंगे अन्यथा रूह की वकालत का लबादा ओढने वालों के गिरोह, जिस्मों की जिन्दगियों को गुलामों की फौज में तब्दील करके रख देंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।